Sant Kabir Das Ke Dohe
Sant Kabir Das Ke Dohe in Hindi: हेलो दोस्तों आज हम आप सभी के लिए संत कबीर दास जी के बेहतरीन दोहे लेकर आए हैं, जिन्हें आप अच्छी तरह से जानते होंगे। “संत कबीर दास जी का जन्म 15वीं शताब्दी सावंत 1455 में राम तारा काशी में हुआ था।हमें उम्मीद है कि हमें यह पोस्ट पसंद आएगी।जिसे आप व्हाट्सएप, फेसबुक या Twitter Instagramपर साझा कर सकते हैं।

कबीर माला मनहि की,
और संसारी भीख ।
माला फेरे हरि मिले,
गले रहट के देख।

मल मल धोए शरीर को,
धोए न मन का मैल
नहाए गंगा गोमती,
रहे बैल के बैल।।

निंदक नियरे राखिये आँगन
कुटी छवाय बिन पानी साबुन
बिना निर्मल करे सुभाय..!

ऐसी वाणी बोलिए, मन का
आपा खोये।
औरन को शीतल करे, आपहुं
शीतल होए।।

जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान
कबीर ~

कबीरा खड़ा बाज़ार
में मांगे सबकी खैर।
ना काहू से दोस्ती ना
काहू से बैर।।

कबीरा चिंता क्या करे,
चिंता से क्या होय।
मेरी चिंता हरी करे,
चिंता मोहे ना कोय।।

गए थे एक फल, संत मिले फल
चार ।
सतगुरु मिले अनेक फल, कहें कबीर
विचार ||

साधु भूखा भाव का धन का भूखा
नाहीं ।
धन का भूखा जो फिरै सो तो
साधु नाहीं ॥
2 Line Sant Kabir Ke Dhohe

प्रीत करो तो ऐसी करो जैसी करे कपास ।
जीते जी या तन ढके मरे न छोड़े साथ ॥

करता था तो क्यूं रहा, अब करी क्यूं पछताए।
बोए पेड़ बबूल का, तो आम कहां से पाए।।

अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप.
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप.

” धीरे धीरे रे मना, धीरे सब होये,
माली सींचे सो घड़ा, ऋतू आये फल होये”

लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट ।
पाछे फिर पछताओगे, प्राण जाहि जब छूट ॥

दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त
अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत

ऊँचे पानी ना टिके… नीचे ही ठहराय।
नीचा हो सो भारी पी… ऊँचा प्यासा जाय।।
4 Line Sant Kabir Das Ji Ke Dohe in Hindi

कबीरा मन निर्मल भया,
जैसे गंगा नीर।
पाछे-पाछे हरी फिरे,
कहत कबीर कबीर।

बुरा जो देखन मैं चला,
बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना,
मुझसे बुरा न कोय ।

कागा काको धन हरे,
कोयल काको देय।
मीठे शब्द सुनाय के,
जग अपनो कर लेय।।

यह तन विष की बेलरी,
गुरु अमृत की खान।
शीश दियो जो गुरु मिले,
तो भी सस्ता जान।।

संत ना छाडै संतई,
जो कोटिक मिले असंत।
चंदन भुवंगा बैठिया,
तऊ सीतलता न तजंत।।

प्रीत न कीजिए पंछी जैसी,
जल सुखे उड़ जाए।
प्रीत तो कीजिए मछली जैसी,
जल सुखे मर जाए |

बुरा जो देखन मैं चला,
बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना,
मुझसे बुरा न कोय ।

दुख में सुमरिन सब करे,
सुख में करे न कोय ।
जो सुख में सुमरिन करे,
दुख काहे को होय ॥
कबीर दास जी के दोहे हिंदी में

तन को जोगी सब करें,
मन को बिरला कोई.
सब सिद्धि सहजे पाइए,
जे मन जोगी होड.

कस्तूरी कन्डल बसे मृग दूढै
बन माहि त्ऐसे घट-घट राम
है दुनिया देखे नहि.. !

झूठे सुख को सुख कहे,
मानत है मन मोद.
खलक चबैना काल का,
: कुछ मुंह में कुछ गोद.

पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ,
पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का,
पढ़े सो पंडित होय।

जैसा भोजन खाइये तैसा
ही मन होय जैसा पानी
पीजिये तैसी वाणी होय. .

जो आया सो चला गया,
धरती छोड़ शरीर ।
जो देहि के संग गया,
ताका नाम कबीर।

कबीरा तेरे जगत में,
उल्टी देखी रीत ।
पापी मिलकर राज करें,
साधु मांगे भीख ।।

बुरा जो देखन मैं चला,
बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना,
मुझसे बुरा न कोय ।

संत बड़े परमार्थी,
जाको शीतल अंग।
तपन बुझावै और की,
दे दै अपन रंग।

जहाँ दया तहा धर्म है,
जहाँ लोभ वहां पाप ।
जहाँ क्रोध तहा काल है,
जहाँ क्षमा वहां आप |

कबीर, यो मन मलिन है,
धोए ना छूटे रंग।
कै छुटे प्रभु नाम से,
कै छुटे सत्संग। ।